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अतीत-स्मृति
 

अन्नाणु-वंशश्लोऽय विप्रैगतिः पुरातनैः।
इक्ष्वाकूनामयं वंशः सुमित्रान्तो भविष्यति॥

इसी तरह अन्य पुराणों में राजों और राजवंशों का जो वर्णन है वह काल्पनिक नहीं। उनमे उल्लिखित राजवंशो द्वारा प्राचीन राजों के काल-निरूपण मे बड़ी सहायता मिल सकती है। पुराणों के राजवंश और तत्सम्बन्धी घटनायें इतिहास-प्रेमियों के बड़े काम की है।

पुराणों में गुप्तवंश के महाराजों तक ही का हाल मिलता है। इसलिए कुछ लोगो का खयाल है कि पुराण गुप्त राजो के समय में बनाये गये। परन्तु बात ऐसी नहीं। पांचवी शताब्दी के अंत मे गुप्तवंश हूण लोगो के आक्रमण से नष्ट हो गया। गुप्त-वंश के बाद भारत में कोई साम्राज्य न रह गया। केवल छोटे छोटे बहुत से राज्य हो गये। देश में कोई साम्राज्य न रहने के कारण पुराणों में अन्य राजवंशों का नाम नहीं आया। गुप्तवंश के बहुत पूर्व भी भारत में कोई साम्राज्य न था। देश मे अनेक छोटो मोटे राज्य थे। पर उन राजवंशों की कीर्ति का वर्णन पुराणों में है। गुप्तवंश के बाद राजों की कीर्ति का वर्णन करने वालों की कमी भी न थी। पांचवीं शताब्दी के बाद यद्यपि पुराणों में किसी बड़े वंश या साम्राज्य का उल्लेख नहीं, तथापि बहुत से ऐसे प्रमाण मिलते भी हैं जिनसे प्रकट होता है कि उस समय छोटे छोटे राजों और राज्यो के वर्णन से पुराणों के आकार की अच्छी वृद्धि हुई है। भिन्न भिन्न स्थानों में पुराणों के बढ़ाये जाने का काम हुआ है।