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बाद को प्रासाद है,—
ड्योढ़ी से दिखता हुआ,
शोभन विशालकाय,
उद्यानों में बना,
चीफ़ मैनेजर साहब उसीसे लेकर चले।
ड्योढ़ी पर सन्तरी खड़ा हुआ,
सिंहद्वार पर जैसा,
जिसको ये पारकर यहाँ आकर पहुँचे हैं,
राजप्रासाद का सन्तरी दिख रहा है
दीर्घ इस ड्योढ़ी के बहुत ऊँचे फाटक से;
सङ्गमारवर के सोपान उसके प्रायः बीस,
बहुत लम्बे-लम्बे, एक-मंज़िले तक ऊँचा-चढ़े;
दोनों ओर तोपें लगीं, बैठे, सिंह भीमकाय
सोने के पानी के चढ़े, दोनों ओर पत्थरों पर;
दोनों ओर बटम पाम, एक एक, बड़े बड़े;
खुला बड़ा बरामदा, संग-मारवर और
संग मूसे का बना, पत्थर चौकोर क्रम
क्रम से लगे हुए,