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थालियाँ ऋतुपुष्पों की, लाल पीले नीले ज़र्द
मिश्र रंगों की बहार तृप्त करती हुई नयन,
बेंचें पड़ी हुई,
सरोवर-जल-स्पृष्ट हवा स्निग्ध आती हुई,
रास्ते के दोनों ओर बटम-पाम की क़तारें,
दोनों ओर सरोवर, काफ़ी भूमि छोड़कर,
दो-दो, चार; दांई ओर मध्य से गई है राह
कृष्णजी के मन्दिर को, बीच से दो सरों के।
हरियाली दूब की, जल की लघु नीलिमा,
बटम-पामों की छाया छत्राकृति दूर तक,
ऋतुपुष्पों की शोभा, देवदार, हींग और
इलायची-अशोक जैसे
क़ीमती वृक्षों की छटा
मुग्ध कर लेती है मन को क्षण मात्र में
जल की लहरियों से खेलता है समीरण।
एक राह और राज-भवन से गई हुई।
बीच में, तालाबों के खत्म होते एक और
ड्योढ़ी पड़ती है बड़ी,