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बोले विष्णु, 'नारद जी,
आवश्यक दूसरा
काम एक आया है,
तुम्हें छोड़कर कोई
और नहीं कर सकता।
साधारण विषय यह।
बाद को विवाद होगा;
तब तक यह आवश्यक कार्य पूरा कीजिए।
तैल-पूर्ण पात्र यह,
लेकर प्रदक्षिण कर आइए भूमण्डल को;
ध्यान रहे सविशेष,
एक बूँद भी इससे
तेल न गिरने पाये।'
लेकर चले नारदजी,
आज्ञा पर धृतलक्ष्य—
एक बूँद तेल उस पात्र से गिरे नहीं।
योगिराज जल्द ही
विश्व-पर्यटन करके