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यहीं से प्रारम्भ इस भोजन का होता है,
पायेंगे प्रसाद सभी।"
मेघमन्द्र कण्ठ से स्तम्भित सब हो गये।
बैठ गये स्वामी जी।
मिष्टान्न लाया गया,
पहले परोसा गया युवक को विनय से।
दबे हुए चुपचाप
समय के प्रभाव से
आमन्त्रित बैठे रहे,
मिष्टान्न खाया स्वाद साधुता का लेते हुए।
खुल गये प्राण सब,
गगन में जैसे तारे
चमके आमन्त्रित जन।
साधुभोज पूर्ण हुआ।
प्रातःकाल सभा हुई।
स्थानीय जन समवेत हुए प्रेम से
रामकृष्ण और श्रीविवेकानन्द की बातें
स्वामी प्रेमानन्दजी के मुख से सुनने के लिए।