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पश्चिमीय की तरफ उँगली उठाई, कहा,
"ऐसा भी आदमी पंक्ति में बैठाला गया
जिसके माँ-बाप का पता आज तक न लगा,
घोर कलिकाल है!"
स्वामी जी ने कहा,
"ऐसे कलिकाल में
रामकृष्ण आये हैं, स्वामी श्री विवेकानन्द
ऐसे ही जनों के परमबन्धु हो गये।
पता उन्हीं का रहा, कुछ पता नहीं था जिनका,
म्लेच्छ और दुराचारी जो लोग कहलाते रहे।"
राजकर्मचारी ने
हाथ जोड़कर कहा,
"आपके बैठे बिना
लोग उठ जायँगे,
यज्ञ अधूरा होगा।"
स्वामी जी ने कहा, "इसी युवक को पहले
लाकर परोसो अन्न-मिष्टान्न जो कुछ हो
भोजन-समाप्ति का,