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खड़े थे देह जैसे।
मञ्च के सामने।
कीर्तन होता रहा
गायकों का, भक्तों का।
बजते हए मृदङ्ग,
करताल, चक्राकार
भक्तजन परिक्रमा करते हुए बार बार।
उत्सव समाप्त हुआ।
स्वामी को बुलाकर
श्रेष्ट राजकर्मचारी
ले आये उपवन के अपने भवन में।
रक्खा समादर से।
पूजानुष्ठान हुआ।
पश्चिमीय तरुण ने
श्रीसुतीक्ष्ण की कथा
रामचरितमानस से
पढ़ी मधुर कण्ठ से
वन्दन रघुनन्दन का