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कीर्त्तन होता रहा
खोल-करताल पर।
खिचड़ी, भाजियाँ कई,
मिष्टान्न, परिवेश
किया गया दीन नारायणों के अभ्यर्थन में ।
अन्य जन बैठते थे
प्रत्याशी प्रसाद के,
साथ, एक पंक्ति में।
कितनी पंक्तियाँ हुई।
आमन्त्रित थे सभी
धनी मानी, नगर के
राजकर्मचारि वर्ग,
जीवन की पुष्टि और
आध्यात्मिक धारणा के लिए आये हुए थे,
भक्ति के प्रतिरूप,
पवन ज्यों मुक्त हों
भली-बुरी गन्ध से।
घेरकर आत्मा को