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सुन्दर-सी बैठक में
गृहस्वामी बैठे हुए।
बालकों का कलरव
गूँजता हुआ अबाध।
बेर के, खजूर के,
आम और जामुन के नीचे, पकते समय,
महाभारत मचा हुआ।
दूर-दूर पास-पास गाँव के आवास हैं
ऊँचे भूखण्डों पर।
नीची-नीची ज़मीं में,
जमता है जहाँ पानी,
धान कट चुके हैं अगहन के, देर हुई,
किन्तु वैसी ज़मीं में अभी तक कुछ नमी है।
गृहस्वामी परमहंस-देव जी के भक्त हैं।
युवक-समाज बड़े चाव से पढ़ता है
स्वामी विवेकानन्द जी के लिखे हुए ग्रन्थ।
शोधन भी चाहता है करना चरित्र का
उनके प्रभाव से,