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द्रम-दल-शोभी फुल्ल नयन ये,
जीवन के मधु-गन्ध-चयन ये।
रवि के पूरक, रङ्ग रङ्ग के,
छाया छवि कवि के अनङ्ग के,
स्नेह व्यङ्ग्य के, सङ्ग सङ्ग के,
अङ्ग अङ्ग के शमित शयन ये।
देह-भूमि के सजल श्याम घन,
प्रणय-पवन से ज्योतिर्वर्षण,
उर के उत्पल के हर्षण-क्षण,
आन्दोलन के सृष्ट अयन ये।
प्रेम-पाठ के पृष्ठ उभय ज्यों
खुले भी न अबतलक खुले हों,
नित्य अनित्य हो रहे हैं, यों
विविध-विश्व-दर्शन-प्रणयन ये।
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