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ध्यान में समाई हुई—
जैसे आकाश में
सूर्य-चन्द्र-तारा-ग्रह
पृथ्वी और जड़-चेतन
बहुरूप रेखाएँ
दिखती हैं, वैसे ही
ज्ञान में
दिखेंगे बीज विश्व के विकास के
ज्ञान-विज्ञान के,
दर्शनेतिहास गत
भिन्न-भिन्न भावों के।
सम्बद्ध क्रियाशील
देखोगे, सलील ही
बदल गये हैं रूप—
भ व, जो तुम्हारे थे,
साथ ही साथ ये
बदले हैं घर-द्वार,