वर्तमान की ओर बढ़ी। अपने में निश्चल युगप्रवर्तक, हुए शीत में व्याधि से विकल, रहा साथ मैं नतमस्तक, सेवा को; अग्रेँज, चले गये तुम धरा छोड़ गौरव-विजय-ध्वज!