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उसे तोड़कर,
मालिन सुई चलाती है मुँह मोड़ मोड़कर,
मै खुशबू में उड़ता हूँ तब,
उसी गगन पर,मुक्त-पङ्खभर,
धरा छोड़कर।

१९४०