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निशा का यह स्पर्श शीतल
भर रहा है हर्ष उत्कल।
तारिकाओं की विभा से स्नात
आलियों की कुन्द-कलिका-गात ;
हिल रहा है श्वेत अञ्चल शात
पवन से अज्ञात प्रतिपल।
चन्द्र-प्रिय-मुख से लगे हैं नयन,
शिखर-शेखर भवन पर है शयन,
वायु व्याकुल कर रही है चयन
अलक-उपवन-गन्ध अन्ध-चपल।
शिखर के पद पर प्रखर जल-धार
बह रही है सरित,—सुस्त विचार
प्रणयियों के, हैं हृदय पर हार
शब्द-सुमनों के, अमल छल-दल।
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