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मा दूसरा। महामाया-"किन्तु मैं जानता हूँ कि यह ऐसा फरेगा, क्योंकि प्रलोमन भी पड़ी पुरी वस्तु है। मल्लिका-"रानी ! बस करो। मैं प्राणनाथ को अपने कर्तव्य से न्युत नहीं करा सकसी, और उन्हें लौट पाने का अनुरोध नहीं कर सकती । सेनापति का राजभक्त फुटुम्य कभी विद्रोही नहीं होगा और राजा की माज्ञा से यह प्राण दे देना अपना धर्म सममेगा जय सक कि स्वय राजा राष्ट्र का द्रोही न प्रमाणिव हो जाय " ा कहूँ। मस्तिका, मुझे दया भाती है और सुमसे स्नेह भी है क्योंकि सुम्हें पुत्र प्रबू पनाने की पड़ी इच्छा थी। किन्तु षमही कोशलनरेश ने उसे अस्वीकार किया। मुझे इसका पादुख है। इसीलिये तुम्हें मधेत फरने भाई थी।" मतिका-"यस रानी बस । मेरे लिये मेरी स्थिति अच्छी है और और तुम्हारे लिये तुम्हारी। तुम्हारे दुविनीत रामकुमार से न व्याही माने में,मैं अपना सौभाग्य ही समझती हूँ। दूसरे फी क्यों, अपनी ही दशा देसो, कोशल की महिपी बनी थीं, अप- महामाया-"महिफा सावधान ! मैं जाती- । (प्रम्याप) 'मल्किा-"गीली-स्त्री, तुझे रामपद फी पड़ी अभिज्ञापा थी 'किन्तु मुझे कुछ नहीं, केवल स्त्री सुलभ सौजन्य और समवेदना वया कर्त्तव्य और--धैर्य की शिक्षा मिली है। भाग्य जो कुछ -- विस्त्रावे -11 - 1