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प्राक्कथन

जावशत्रु' के लेखक—जिनसे हिन्दी पाठक खूप अच्छी तरह परिचित हैं—हिन्दी के उन इने गिने लेखकों पल में से हैं जिन्होंने मातृ भाषा में मौलिकता का आरम्भ किया है। उनकी कृतियाँ मौलिक है यही नहीं, वे महत्वपूर्ण भी हैं।

यों तो उनकी रचना और शैली में सभी जगह उत्कृष्टता है। पर उनके नाटकं तो हिन्दी-संसार में एक दम नई पीठ हैं। वे भाज की नहीं, आगामी फल की चीज है। ये हिन्दी साहित्य में एक नए युग के विधायक हैं। न विचारों के खयाल से, न कथानक के खयाल से, न लक्ष्य के खयाल से आज तक हिन्दी में इस प्रकार। की रचना हुई है म अमी होती ही दीख पड़ती है।