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अजातशत्रु ' विरुद्धक-माँ क्या कहती हो। हम आज एक विरस्कृत युवक मात्र हैं। कहाँ का फोशल और कौन राजकुमार ! 151 ____ रानी-"देखो, तुम मेरी सन्सान होकर मेरे सामने ऐसी पोष यात म कहो । दासी की पुत्री होकर भी मैं राजरानी पनी और ठं से मैंने इस पद को प्रहण किया, भौर सुम राजा के पुत्र होकर इतने निस्तेज और डरपोक होगे यह कमो मैंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था । यालफ! मानव अपनी इच्छाशकि से और पौरुप से ही कुछ होता है। जन्मसिद्ध तो कोई भी अधिकार, दमरों के समर्थन फा महारा चाहते हैं । विश्वभर में छोटे से बड़े होना यही प्रस्पर नियम है, तुम इसकी क्यों अबहेला करते हो। महत्त्वाकांक्षा के प्रदीप्त अग्निपुएट में फ्रने फो प्रस्तुत हो जानो, विरोधी शक्तियों को मन करने के लिये फाल स्वरूप हो आयो। साहस के माग सनका सामना करो, फिर या तो तुम गिरोगे या वे ही भाग जायगी। मक्किा तो क्या राजलक्ष्मी सुम्हारे पैरों पर लोटेगी। पौरुप करो। इस पृथ्वी पर जियो तो कुछ होकर जियो, नहीं तो मेरे दूध का अपमान फरान फो सुम्हें अधिकार नहीं। - विरुद्धफ-"यस माँ, यब कुछ न कहो। आज से प्रतिशोध लेना हमारा फर्सव्य होगा, और यही जीवन का लक्ष्य होगा। माँ। मैं प्रतिज्ञा करया हूँ कि तेरे अपमाा के मूल कारण इन शाक्यों का एक बार अवश्य सार फरँगा और उनके रक्त में नहा फर इस फौशल के सिंहामन पर मैठ फर सेरी बन्दना करूंगा।