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म पहिला नमस्कार का भी उसर देने के लिये मुम्ब को व्यागन न कीजिये। पहले रेचक प्रदान कीजिये। निदान में समय नष्ट न कीजिये।" . जीव-(स्वगत ) "यह विद्रूपक इस समय कहाँ से भागया । मगयान, फिसो तरह यह हटे !" घमन्तक-"क्या भाप निदान कर रहे हैं ? अजी अजीर्य है अजीर्ण । पाचन देना होगे, नहीं तो हम पछी तरह जानते हैं कि वैध लोग अपने मतलम से रेचन सो अवश्य ही रेंगे। अभया हौं, कहो तो युधि के अजीर्ण में सो ग्यन ही न गुणकारी होगा ? सुनो जी, मिय्या आहार से पेट फा प्रार्थ होता है और मिया विदार मे बुद्धि फा। किन्तु,'महर्षि अमिवश ने फंहा है कि इसमें ग्वन ही गुणकारी होता है।" (सता) ५. मीवझ-"तुम दूसरे की तो फुन्छ मुनोगही नहीं ?" यसन्तक-"मुना है कि धन्वन्तरि के पास एफ एसी पुड़िया मी कि बुढ़िया युवधी हो जाय और दरिद्रता का फेचुरा छोड़कर मणिमयो धनवती हो आय। क्या तुम्हारे पास भी नहीं है। तुम क्या जानो। ___ौनक--"तुम्हारा वापर्य्य क्या है ? हम कुछ नही समझ मपे। घमन्नफ-"फेवल मल यहा पसाचे से। और मूर्खता का पुद पार करते रहें। महाराज ने एफ नई दरिद्र पन्या से ब्याह