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अजातशत्रु ।
 

उदयन--"नहीं प्रिये ! मगध से एक गौतम नाम के बड़े भारी महात्मा आये हैं, जो अपने को "बुद्ध"--कहते हैं। देवी पद्मावती के मन्दिर में उनका मघ निमन्त्रित होता था और ये उपदेश देते थे। महादेवी वामवदसा भी वहीं नित्य आती थीं।

मागन्धी--(बात काट कर) "तम फिर मुझे क्यों पूछा जाय-"

उदयन-–(आदर से) "नहीं नहीं, यह तो तुम्हारी ही भूल थी। बुलवाने पर भी नहीं आई। वाह ! सुनने के योग्य उपदेश होता था। अमी सो और मी होगा। हमने अनुरोध किया है कि व कुछ दिनों तफ ठहर कर फैशाम्बी में धर्म का प्रचार करें।"

मागन्धी--"आप पृथ्वीनाथ हैं सब कुछ आपको सोहता है, किन्न में तो अच्छी आँखों से इस गौतम को नहीं देखती। और यह सब मगध के राजमन्दिर में ही मुडियों का स्वाँग अच्छा है, कौशाम्बी इस पाचाड मे बची रहे तो बड़ा उत्तम हो। स्त्रियों के मन्दिर में उपदेश क्यों हो। क्या उन्ह पातिव्रत छोड़कर किसी और भी धर्म की आवश्यकता है?

(पानपात्र बढ़ाती है)
 

उदयन--"ठहरो मागन्धी' पुरुष का हृदय बड़ा मशक होता है क्या तुम इमे नहीं मानती ? क्या अभी २ तुमने कुछ विपात अङ्ग नहीं किया है? यह मदिरा अब मैं नही पीऊँगा । अभी आजही भगवान का इसी पर उपदेश हुआ है, पर मैं देखता हूँ फि मदिरा के पहिले तुम ने हलाहल मेरे हृदय में उड़ेल दिया ।

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