अजातशत्रु। --- ___ मागन्धी--(पापही श्राप) गौतम ! यह तुम्हारी तितिक्षा तुम्हें फहाँ ले जायगी-१ यह सुमने कभी न विचाग कि सुन्दरी नियाँ भो ससार में कुछ अपना अस्तित्व रखती हैं। अच्छा देखू सो कौन स्था रहता है। (मधीमा का पान पात्र सका प्रश) नवीना-"महादेवी फी जय हो ! मागन्धी-"तुम्हें भी बुलाना होगा क्यों ? महागज नहीं आते हैं तो तुम सब महारानी हो गई हो न?" . । नत्रीना-"दासी को आशा मिलनी चाहिए। यह तो प्रति जण श्री चरणों में रहती है ।। (पान बगतो है) मागन्धी-"महाराज आज मागे कि नहीं, इसका पता लगा कर शीघ्र भावो- मागन्धी--(पापही श्राप गाती है) 1 भली न क्यों मामा अवहेला : की। - - चम्पक कली पिला सौरभ स उपा मनोहर बला की । नवीना-(प्रवेश करके ) "महाराज पाया ही चाहसे हैं।' मागन्धी-"अच्छा। आज मुझे बड़ा फाम करना है नवीना! नर्वझिया को शीघ्र घुला--मेरी वेशभूपा भी ठीक है न-धेस्य सो-" नवीना--"वाह स्वामिनी, तुम्हें वेशमूपा की फ्या, श्राव- श्यकता है-
पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/६४
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।