भापहिला। दश्यपाचवा (ौशाम्बी में मागम्पी का मगर ) मागन्धी-स्मगत)"इस मप का इसना अपमान ! सो भी एक दरिट भिक्षु फे हाथ ! मुझसे ब्याह करना अम्वीकार किया । यहाँ मैं राजरानी हुई,फिर भी यह नाला न गई, यहाँ रूप का गौरव हुआ तो धन के अभाव मे धरिद्र फन्या होने के अपमान की यन्त्ररणा में पिस रही हूँ। अच्छा इसका भी प्रविशोध लूँगी, अप यही मेरा प्रत हुआ। उदयन राजा है तो मैं भी अपने रदय की रानी हूँ दिखला देंगी कि स्त्रियाँ क्या कर सकती हैं। फौन है ? (पावामी रा परा) दामी--"महादेवी ' क्या प्राज्ञा है ?" मागन्धी-नही न गई थी गौतम का ममापार लाने, पह माज कल पद्मावती के मन्दिर में मिला करने पाता है न ? दामी-"माता है स्वामिनी । यह तो पटों महल में पैठ कर प्रपदरा करता है। महाराज मी वहीं बैठ कर उसकी वक्तसा मुनते हैं। बड़ा भादर करते हैं। मागन्धी-"तभी की दिनों मे घर नहीं पाते हैं। अच्छा नमियों को तो पुलाला। नवीना को भी फहरे कि यह शीय पाये। और आसप लेतीप्राव " (वामी का प्रस्पान) २२
पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/६३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।