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अङ्क पहीला।
 

हिंस्र निष्ठुरता निदर्शन मेडिय,
विश्य में है यहा करने के लिय ।

समुद्र०--"देवी ! फरुणा और स्नेह के लिये तो रमणी जगत में हुई हैं, किन्तु मनुष्य भी क्या यही हो जाय !"

पद्मा--"चुप रहो समुद्र ! क्यो क्रूरता ही मनुष्यता का परिचय है। एसी चादकियाँ भाषी शामक को अच्छा नहीं बनातीं।"

(वचना का प्रवेश)

छलना०--"पद्मावती ! यह तुम्हारा अविचार है । कुणीक का प्रदय छोटी छोटी बातों में तोड़ देना, उसे डरा देना, उसकी मानसिक उन्नति में बाधा देना है।"

पद्मा०--"माँ, यह क्या कह रही हो ! कुणीक मेरा भाई है, मेरे सुखों की आशा है, मैं उमे कर्त्तव्य क्यों न बताऊँ ? क्या उसे चाटुकारों की चाल में फँससे देनें और कुछ न कहूँ।"

छलना०--"तो क्या तू उस बोदा और डरपोक बनाना चाहता है ? क्या निर्मल हाथों मे मी कोई राजदणड ग्रहण कर सकता है?"

पद्मा०--"माँ, क्या कठोर और क्रूर हाथों से ही राज्य सुशा- सित होता है ? ऐसा विषवृक्ष लगाना स्या ठीक होगा ? अभी कुणीक किशोर है। यही समय सुशिक्षाका है। मैं अन्त करण से भाई कुणीक फी भलाई चाहती हूँ।