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क्या प्रसा विहारशीतं च मायामतगागान्निर्गता -महासेनसैनिका पत्सपति न्ययसिंपुः । मेघदून में भी-" प्राप्यावतीनुदयनकथाफोचिदमामद्धान् । और "प्रघातस्य मियदुहितर बत्सराजोऽन्न जह इत्याटि है। इसी से इस फया की सर्वलोफ प्रियता समझी जा सकती है । वररुचि ने इस उपाख्यान मालाको सम्भवत ३५०३० पूछ लिया होगा। फिर सातवाहन नामक आध्र-नरपति के गज पडित गुणाहा ने इसे वृहत्कथा नाम स, ईसा की पहिली शताब्दी में, लिया। इस कथा का नायक नरयाहनदस इसो उदयन का पुन था। धौलों के यहाँ इसके पिता का नाम 'परतपा मिलता है। और, 'मरन परिदीपित उदेनिघस्तु' के नाम से एक आख्यायिका है। उसमें मो-जैसा कि कथासरित्सागर में इसकी माता का गरूर-वश के पक्षी द्वारा उदय-गिरि की गुफा में ले आया जाना और वहाँ एक मुनि कुमार फा उसकी रक्षा और सेवा करना लिखा है। घट्दत दिनों तक इसी प्रकार साथ रहते-रहते मुनि से उसका स्नेह दो गया, और उमीसेवह गर्सवतीहुई। उदय गिरि (फलिंग) की गुफा में जन्म होने के कारण लड़के का नाम उदयन पड़ा। मुनि ने उसे इस्ती घश करने की विधा मौर और भी कई सिरियाँ दी। एक वीणा भी मिली ( फ्थासरित्सागर के अनुसार यह, प्राण बचाने पर, नागराज ने दी थी)। यीणा द्वारा हाथियों और शवरा की बहुत सी सेना एकत्र करके उसने कौशांगी को हस्वागत किया और उसे अपनी राजधानी बनाया। किंतु वृहत्कथा के आदि आपार्य घराय का फौशाम्या में जन्म होने के कारण, उदयन को ओर विशेप पक्षपात सा दिखाई देता है। अपने प्रास्त्यान के नायक को कुलीन मनाने के लिये समने उदयन को पाइव पश फा लिखा है। उसके अनुसार उदयन राठीवधारी अर्जुन को सातवी