महतोसरा औषक-'की रथ घर पर आये हैं, और रामकुमार फणीक भी आ रहे हैं। पिम्यसार-"कुएीफ फौन ? मेरा पुत्र, या मगध का सम्रा, अमावशत्रु॥ भजात०-(प्रवेश फरके ) पिता ! भापका पुत्र, यह फणीक सेवा में प्रस्तुत है।" (पैर पाता है) पिम्पसार-'नहीं नहीं, मगधराज अजावराय को सिंहासन फी मादा नहीं भग करनी चाहिए । मेरे दुर्वल धरण-भाइ छोद पो" पजाव०-"नहीं पिता । पुत्र का यही सिंहासन है। पापने भूटा सोने का सिहासन देकर मुझे इस सर्व अधिकार से पञ्चित किया। अवाध्य पुत्र को भी कौन क्षमा करता है ? पिम्बसार-"पिता । फिन्सु, पइ पुन को क्षमा करता है। सम्राट फो पमा करने का अधिकार पिता को कहाँ" भजास०-"नहीं पिता, मुझे भ्रम हो गया था। मुझे अच्छी शिक्षा नहीं मिली थी। मिली थी केवलजालीपन की स्ववत्रता का अमिमान अपने को विधभर से स्वतंत्र जीव समझने का मला भास्म सम्मान " विम्बसार- 'वह भी सो तुम्हारे गुरुजन की ही दी हुई शिक्षा भी । तुम्हारी माँ थी-राजमाग।" अजात०-"यह केवल मेरी माँ पी-एक सम्पूर्ण प्राका
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