पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१५९

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महतीसरा। " मल्लिका-" सब पाप यह स्वीकार करते हैं कि भयानक अपराध भी जमा कराने का साहस मनुष्य को होता है m प्रमेन०-"विपन्न की यही आशा है । तप भी । मल्लिका-"तप भी ऐसा भपराध जमा किया जाता है, क्यों सम्राट । प्रसेन.--" मैं क्या करें इसका उदाहरण सो मैं स्वयं हूँ देवि मसिका-"य यह राजकुमार विरुद्धक भी पमा का अभि प्रमेन०-"किन्सु वह राष्ट्र का द्रोही है क्यों धर्माधिकारी ससका क्या पराड है " । धमा०-" मृत्युदयष्ठ । महाराज |" मलिका-"रामन् ! विद्रोही पनाने के कारण भीभाप दी है। पनाने पर विरुद्धक राष्ट्र का एक सबा शुभचिन्तक हो मकता था। और इसमे क्या मैं तो स्वीकार फराघुफी हूँ किंमयानक अपराध भी मार्यनीय होते हैं।" ।' प्रसन- सब पिटरफ पमा फिया जाय। विनयक-"पिता, मेगमपराध फौन क्षमा करेगा पिछोही कोकीन ठिकाना देगा १ मेरी धार लम्बा से ऊपर नहीं उठती है। मुझे राज्य नहीं चाहिए । चाहिये केवल मापकी समा। पृप्वी फे साक्षात मेवता । मेरे पिता ! मुझमपरापी पुत्र को तमा कीपिये। (परण पकड़ता है।