पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१५५

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महतीसरा राकिमती-(सिर मुकाकर ) "हाँ कारायण ! यहाँ सो मुझे सिर मुफाना ही पड़ेगा। ___फारायण-"देवी ! मैं एफ दिन में इस कोशल को उलट पलट देवा, छत्र पमर लेकर हठात् विकसक को सिंहासन पर बैठा देवा, किन्त पिच के बिगड़ने पर भी मल्लिका देवी का शासन मुझे सुमार्ग से नहीं हटा सका । हम और आप देखेंगी फि शीघ्र ही फौशल के सिंहासन पर राजकुमार विरुद्धक बैठेंगे।" (विस्यक और मशिला का प्रदेश) शक्तिमतो-'भाग्या मशिका को मैं मियादन करती है। फारायण-"मैं नमस्कार करता हूँ। (विस्यक माता का चाण तारे। मल्लिका-"शान्ति मिसे, विश्व शीतल हो । बहिन, क्या तुम भम मी राजकुमार को उत्तेजित करके उसे मनुष्यता की स्थिति से गिराने की चेष्टा फरोगी ? तुम जननी हो तुम्हारा प्रसभ मावभाव क्या तुम्हें इसीलिये उत्साहित करता है ? क्या कर विरुखफ को ठेस फर तुम्हारी भन्तरास्मा सस्मित नहीं होती। ___ शक्तिमधी-"बह मेरी भूल थी देवी। जमा करना । पह पर्वरता का उद्रेक पा-पाशव पृत्ति को सत्तेजना थी। मलिका-"चन्द्र सूर्य, शीतल उष्ण, क्रोष करुणा, पस्नेह, का द्वन्द ससार का मनोहर दृश्य है। रानी । स्त्री पुरुष मी उसी विनषण सृष्टि का प्रयत्नम्बन है। स्त्रियों का कर्तव्य है कि पाशवृत्ति बाने फरकमा मनुष्यों को कोमनमौर फरणाप्लुवकरे, कठोर पौरप (२१