पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१३९

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भावीस हो, देवदत को मुक्त कर दो । चाहे इसने किसना मी हम लोगों का भनिष्ट-चिन्तन किया है, फिर भी परिमाजक मार्जनीय है ।” ___ छलना-(प्रहरियों से ) “छोरदो इसको, फिर काला मुख मगध में न दिखावे" (मारी कोरते हैं। देवात गवारे) वासवी-"देखो, राम्य में आता न फैलने पाय । र होफर मगध का शासन करना। किसी को कट भी न हो। और प्यारी छलना ! यदि हो सके तो भार्यपुत्र की सेवा करके नारी जन्म सार्थक कर लेना " छलना--"धासपी ! यहिना (रोने लगती है) मेरा कुणीक मुझे दे दो में भीस्य माँगती हूँ। मैं नहीं जानती थी कि निसर्ग से इतनी करुणा और इतना स्नेह सन्तान के लिये, इस हदय में सचित था। यदि मानवी होती तो इस निष्ठुरता का स्वागन फरसी।" वासवी-"रानी! यही जो मानती कि नारी का हदय कोम- 'लता का पालना है, दया का सदम है, शीतलसा फी छाया है और भनन्य भक्ति का बादर्श है तो पुरुपार्य फा ढोंग क्यों करती । रो मत ! पहिन में जानी हूँ तू यही ममम कि कुपीक नानिहाल गया है।" छलना-"तुम जानो ।" (पट परिवर्तन) .