पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/१३३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भइसरा | को इसमें उत्तेजना मिलती है। युद्धस्मल का एश्य बड़ा मीपण (होता है। छलना-"कायर ! आँख बन्द कर ले। यदि एसा ही था वो क्यों यूदे पाप को हटा कर सिंहासन पर बैठा ।" अजास०-"सुम्हारी याज्ञा से। माँ मैं पाज सिंहासन से हट फर पिता की सेवा करने को प्रस्तुत हूँ।" देवदत-(प्रश फर के) "किन्तु अव बहुत दूर तक यद माये, सौटने का समय नहीं है। उधर देखो, फोशल और कौशाम्मी की सम्मिशिव सेना मगधपर गरनवी चली आ रही है ।", छलना-"यदि उसी ममय भाक्रमण कोसल पर हो जाता तो भान इसका भावकारा ही न मिनवा ।" देवदत्-"समुद्रदास का मारा जाना आपको अधीर कर रहा है किन्तु क्या समुद्रास के ही भरोसे आप सम्रा पने । बह । नि@घ विलासी-उसका ऐसा परिणाम वो होना ही था। पौरुप करनेवाने को अपने वनपर विश्वास करना चाहिये । युवराज !" 'छलना-"बच्चे ! मैंने बड़ा भरोसा किया था कितुम्हें भारत- मया का सम्राट् देखूगी और पीरप्रसूती होकर एफबार गर्व से सुमसे चरण पन्दना कराऊँगी, किन्तु आह! पतिसेवा से मी धचित दुई और पुत्र का " 'देवदच-'नहीं, नहीं, राजमाता दुयी न हो। भजावरात्र तुम्हारा अमूल्य रत्न है, रण की भयानकवा देस्य फर दयाल पीर पनसय का मीदय पिघल गया था ।"