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अजातशत्रु ।
 

'अजातशत्रु' का अन्तिम दृश्य इसका प्रस्तुत प्रमाण है। यद्यपि अन्त में बिम्पसार का लड़खड़ाना यवनिकापतन के साथ उसके मरण का द्योतक है। किन्तु, जिन पाक्यों को कहता हुआ वह लड़खडाता है वह वास्य सथा उसी क्षण भगवान् गौतम का प्रवेश, बिम्ब सार के हृदय की, सथा उस अवसर की पूर्ण शान्ति का सूचक है।

हँ, 'प्रसाद' जी के नाटक ऐसे ही हैं। वे न वो केवल अन्तर्द्वन्द्व को लेकर मर्त्यलोफ में, चतुर्मुख की मानसी सृष्टि की तरह चम- त्कार पूर्ण किन्तु निसार और निरयलम्य जगत् को अवतारणा करके हैं। न केवल वाह्मदन्द्व दिखा कर मानवता के सामने पाशव आदर्श रखते हैं। वरन, वे इन दोनों अगों के समुचित समिश्रण होने के कारण मानवता के उच्चतम आदर्श के पूर्ण व्यजक हैं। अतएष मानवता की पे एक पड़ी भारी पूँजी हैं।

'प्रसाद' के आदर्श पात्रों में पवित्रता, उच्चता, भव्यता आदि वेष गुण इस लिए हैं कि ये पूर्ण मनुष्य हैं। उनका विम्बसार, मगधा धिप होने के कारण पड़ा नहीं । उसकी बड़ाई इस लिए है कि वह, नीचे लिखे, तथा इसी प्रकार के अन्य वाक्य द्वारा उन संकीर्ण सामाजिक नियमों को, जिन्होंने मनुष्य को ऊँच नीच के भिन्न मिन्न प्रकार के सपनों में सफर कर मानवता को पवित्रता को पददलिव कर रक्या है, किस ज़ोरों में खणडन किया है--

"यदि में सम्राट् न होकर किसी विनम्र लता के कोमल फिसलय के झुरमुट में एक अधखिला फूल होता और ससार की