पृष्ठ:अजातशत्रु.djvu/११५

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प्रहदूसरा। और राजकुमारो पनावसी फा पूर्ववत् फिर गौरव हो गया। और ३ वह दुष्टा मागन्धी महल में भाग लगा कर जल मरी " 3 पिम्य-"धेटी पना ! प्राण वचे। इसने दिनों तक यही दुखी रही । क्यों नीवफ !!" । वासवी-"और फोशल का क्या समाचार है ? विरुखक को {। माई ने पमा किया, या नहीं ? यह आनफल कहाँ है ?" है जीयफ-"यही सो फाशी का शैलेन है। उसने मगधनरेश- नहीं नहीं-कुमार कुणीफ से मिलकर कोराल सेनापसि यन्मुल को मार गला, और स्वय इधर उधर विद्रोह करता फिर रहा है। । वासवी-"यह क्या है ? भगवन् ? पपों को यह क्या समी है? क्या यही राजकुल की शिक्षा है " . जीवक-"और महाराज प्रसेनजित पायल होफर रणक्षेत्र से पलट गये। फिर कोई नई याव हुई हो तो मैं नहीं जानता !" विम्बसार--"जीवक । अब तुम विभाम करो। मम और कोई समाचार सुनने की इच्छा नहीं है। सप ससार भर में पुत्रों का पिता स विद्रोह, पति का पत्नी से संपर्प-हत्या-अभि- योग, पढ़यन्त्र और मवारणा, यही सप तुम सुनाओगे, ऐसा मुझे निश्चय होगया । जाने दो। एफ शीतल नि:श्वास लेकर सुम विश्व के पास्याचक्र से अलग हो जाओ। और इसपर प्रनय के सूर्य की किरणों से वप कर गजसे हुए ने जोहे की पां होने दो। अविश्वास की ऑधिया फो सरपट पोरने दो। पृथ्वी के प्राणियों में श्रन्याय पढ़े, जिसमें रद होकर १