पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/९९

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( ७३ ) नाम आया है। जैसा कि मि पाठक और मि० दीक्षित ने E. I. खंड १५, पृ० ४१ में बतलाया है, राय बहादुर हीरालाल ने यह पता लगा लिया है कि यह नंदिवर्द्धन वही कस्बा है जो आजकल नगरधन कहलाता है और जो नागपुर से वीस मील की दूरी पर है। कस्बे का नंदिबर्द्धन नाम कभी वाकाटकों या भार-शिवों के समय में नहीं रखा गया होगा; क्योंकि उनके समय में तो नंदी- उपाधि का परित्याग किया जा चुका था, बल्कि यह नाम भार• शिवों के उत्थान से भी बहुत पहले रखा गया होगा। जिस समय नाग राजा लोग पद्मावती और विदिशा से चले थे, उस समय उनके नामों के साथ नंदी की वंशगत उपाधि लगती थी। ऐसा जान पड़ता है कि नंदी नागों ने प्रायः पचास वर्षों तक विंध्य पर्वतों के उस पारवाले प्रदेश-अर्थात् मध्य प्रदेश में जाकर शरण ली थी जहाँ वे स्वतंत्रतापूर्वक रहते थे और जहाँ कुशन लोग नहीं पहुँच सकते थे। आर्यावर्त के एक राजवंश के इस प्रकार मध्य प्रदेश में जा बसने का बाद के इतिहास पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा था और इसी प्रभाव के कारण भार-शिवों और उनके उत्तराधिकारी वाकाटकों के शासनकाल में दक्षिणा- पथ के एक भाग के साथ आर्यावर्त संबद्ध हो गया था। सन् १०० ई. से सन ५५० ई. तक मध्य प्रदेश का विंध्यवर्ती आर्यावर्त अर्थात् बुंदेलखंड के साथ इतना अधिक घनिष्ठ संबंध हो गया था कि दोनों मिलकर एक हो गए थे और उस समय इन दानों प्रदेशों में जो एकता स्थापित हुई थी, वह आज तक बराबर चली चलती है । बुदेलखंड का एक अंश और १. हीरालाल कृत Inscriptions in C. P. & Berar पृ० १०-नागवद्धन-नगरधन ।