(७१ ) देवता है। कवि ने अपने आश्रयदाता का स्वभाव उग्र और कठोर बतलाया है और कहा है कि सुंदरी स्त्रियों में उसका मन नहीं रमता और वह स्वभाव से ही युद्धप्रिय और भारी योद्धा है। यह ग्रंथ काव्यमाला नामक संस्कृत पुस्तकमाला के सन् १८६६ वाले चौथे खंड में पृ० ३७ से ५२ तक छपा है । परंतु काव्यमालावाली प्रति के दूसरे श्लोक में राजा का नाम इस प्रकार गलत दिया गया है-गतवक्त्रश्रीर्नागराजः । पर मिथिलावाली हस्तलिखित प्रति में वह नाम इस प्रकार दिया है-गजवक्त्रधी गराजः अर्थात् श्री गणपति नागराज; और इसी से मुझे यह पता चला कि यह उल्लेख गणपति नाग के संबंध में है। यह बात प्रायः सभी लोग अच्छी तरह जानते हैं कि जम्मू के पास तथा पंजाब के और कई स्थानों में टाक नाग रहा करते थे । राजपूताने के चारणों, चंद बरदाई और मुसलमान इतिहास-लेखकों ने उनके राजवंश का उल्लेख किया है। महाभारत में उनके गोत्र कर्पटी का भी उल्लेख मिलता है जहाँ पंजाब राजपूताने के प्रदेश में मालवों के साथ पंचकर्पट भी रखे गए हैं। स्पष्टतः ये सब प्रजा- १. गणपति नाग के चरित्र और स्वभाव आदि के संबंध में देखो छंद सं० ७६, ६६ और ६२ अादि । साथ ही काव्यमालावाली प्रति में देखो छंद सं० १ और ६८-१०० जिनमें गणपति नाग के वंश का वर्णन है। २. देखो इस पुस्तक में पृ० ८१ की पाद-टिप्पणी ३ । ३. कनिधम A.S.R. खंड २, पृ० १० । मध्य युग में मध्य देश में टक्करिका नाम का एक भट्ट गाँव था जिसके वर्णन के लिये देखो [. A. १७, पृ० २४५ ।
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