( ७० ) एक ऐसे हस्तलिखित काव्य की प्रति से चला है जो स्वयं गणपति नाग के ही शासनकाल में लिखा गया भाव-शतनक और नागों था और उसी को समर्पित हुआ था। का मूल निवास स्थान उसमें कवि कहता है कि नाग राजा' वाक (सरस्वती) और पद्मालया (पद्मावती) दोनों से ही शृंगरित या सुशोभित है और पद्य में उसमें उसका नाम गजवक्तश्री (गज या हाथी के मुख वाले राजा) नाग दिया है । एक और पद्य में वह कहता है कि गणपति को देखकर और सब नाग भयभीत हो जाते हैं । यह राजा धारा पश्चिमी मालवा का स्वामी या अधीश्वर कहा गया है। उसके वंश का नाम टाक कहा गया है और उसका गोत्र कर्पटी बतलाया गया है। न तो उसका पिता जालप ही और न उसका प्रपिता विद्याधर ही राजा था। इससे यह जान पड़ता है कि वह किसी राजा का सगोत्र और बहुत निकट संबंधी होने के कारण सिंहासन पर बैठा था। इस ग्रंथ का नाम भावशतक है जिसमें सौ से कुछ अधिक छंद हैं जिनमें से ६५ छंदों में प्रायः भावों का ही विवेचन है। प्रत्येक छंद स्वतः पूर्ण है और उसमें कवित्व का एक ही विचार या भाव उसी प्रकार आया है, जिस प्रकार अमरु में है। बहुत से छंद शिवजी की प्रशंसा में हैं जो कवि के आश्रयदाता का इष्ट १-२. जायसवाल कृत Catalogue of Mithila Mss दूसरा खंड, पृ० १०५ । नागराज समं [ शतं ] ग्रंथं नागरान तन्वता अकारि गजवक्त्र-श्रीनागराजो गिरां गुरुः ।। ३-४. पन्नगपतयः सर्व वीक्ष्ते गणपति भीताः (८०)। धारा- धीशः (६२)।
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