( ६१ ) चल जाता है । ये लोग यादव थे और टक्क देश' पंजाब से आए थे। मथुरावाले वंश ने कभी अपने सिक्के नहीं बनाए थे। परंतु पद्मावती में शासन करनेवाले राजवंश ने आदि से अंत तक बराबर अपने सिक्के चलाए थे। इससे सिद्ध होता है कि उनका राजवंश स्वतंत्र था और भार-शिवों के अधीन वे उसी प्रकार थे, जिस प्रकार कोई राज्य किसी साम्राज्य में होता है। ऐसा जान पड़ता है कि मथुरा में राज्य करनेवाला वंश और वह वंश जिसमें नाग- दत्त (लहौरवाली मोहर के महाराज महेश्वर नाग का पिता) हुआ था और जिसका राज्य अंबाले जिले के कहीं आस-पास श्रुघ्न नाम की पुरानी राजधानी में था, प्रत्यक्ष रूप से भार-शिवों के ही अधीन और शासन में था। बुलंदशहर जिले के इंद्रपुर (इंदौरखेड़ा) में या उसके आस-पास भी एक और वंश राज्य करता था। बुलंदशहर में मत्तिल की मोहर पाई गई थी जिसपर एक नाग चिन्ह ( शंखपाल )२ अंकित था और जिस पर राजन् उपाधि नहीं थी। ग्राउज और फ्लीट ने सिद्ध किया है कि समुद्रगुप्त के शिलालेख में जिस मत्तिल का उल्लेख है, वह यही संभवतः १. टक्कों और टक्क देश के संबंध में देखो कनिंघम A. S. R. खंड २, पृ. ६; और उस देश में यादवों के निवास के संबंध में देखो उसी ग्रथ का पृ० १४ । हेमचंद्र ने अपने अभिधान-चिंतामणि ( ४. २५.) में वाहीक को ही टक्क कहा है 1 २. देखो गुप्त इतिहास के संबंध में तीसरा भाग ६ १४०; और Indian Antiquary भाम १८, पृ० २८९ प्लेट, जहाँ एक शंख और एक सर्प का श्राकार बना है। सर्प के शरीर से प्रकाश निकलकर चारों ओर फैल रहा है।
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