( ५८ ) इस बात का इतना अधिक महत्त्व माना गया था कि बालाघाट में वाकाटकों के जो ताम्रलेख आदि मिले हैं, उनमें वह केवल भार-शिव महाराज ही कहा गया है और यह नहीं कहा गया है कि वह वाकाटक भी था । और जैसा कि हम आगे चलकर (भाग २,६६४) बतलावेंगे, युद्ध-क्षेत्र में समुद्रगुप्त द्वारा मारा जानेवाला रुद्रसेन था जिसका उल्लेख रुद्रदेव के रूप में आया है। यहाँ 'देव' शब्द का अर्थ महाराज है। इस प्रकार नागों का वंश वाकाटकों के युग में समुद्रगुप्त के समय तक चलता रहा । पुराणों में साफ साफ यह भी बतला दिया गया है कि नाग वंश में नव नागों का कौन सा स्थान था; और यह भी बतला दिया गया है कि उनके राज्य की सीमा कहाँ तक थी। पुराणों में नव-नागों को वि (न्) वस्फाणि और मगध के गुप्तों के बीच में स्थान दिया गया है। यह वि (न) वस्फाणि कुशनों का क्षत्रप था जो मगध और पद्मावती में शासन करता था। मगध के गुप्तों के संबंध में विष्णुपुराण में यह कहा गया है कि उनका उत्थान नव नागों के शासन-काल में हुआ था। यह बात मगध के इतिहास के बीच में जोड़ दी गई है और वाकाटक सम्राटों के इतिहास के बाद मगध के इतिहास का एक नया प्रकरण प्रारंभ किया गया है। नव नागों का राज्य केवल संयुक्त १. यदि कानून या धर्मशास्त्र की दृष्टि से देखा जाय तो रुद्रसेन प्रथम ( पुत्रिकापुत्र ) के राज्यारोहण के कारण मानों भार-शिव राज- वंश ने वाकाटकों को दबाकर उनका स्थान ले लिया था; और इस विचार से यही माना जायगा कि प्रवरसेन प्रथम की मृत्यु के साथ ही साथ वाकाटक राजवंश और उसके साम्राज्य तथा शासन का भी अंत हो गया ।
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