आस-पास उन लोगों ने अश्वमेध यज्ञ' किए और वहीं उन लोगों के राज्याभिषेक हुए। काशी के पास का नगवा नामक स्थान, जहाँ आजकल हिंदू-विश्वविद्यालय है, उनके नाम से संबद्ध जान पड़ता है। कांतिपुरी से वे लोग पश्चिम की ओर बढ़े और वीरसेन के समय में, जिसने बहुत अधिक संख्या में सिक्के चलाए थे और जिसके सिक्के अहिच्छत्र के पूर्व से मथुरा तक पाए जाते हैं, उन्होंने फिर पद्मावती और मथुरा पर अधिकार प्राप्त कर लिया था। पद्मावती वाले सिक्कों में से जो प्रारंभिक सिक्क हैं और जिनपर विर तथा व () अक्षर अंकित हैं, वे वीरसेन के हैं । इन दोनों सिक्कों पर पीछे की ओर जो मोर बना है, वह वीरसेन का प्रसिद्ध चिह्न है। और यह वीरसेन भी महासेन ही जान पड़ता है जिसका अर्थ है-देवताओं का सेनापति। फिर भीम नाग और स्कंद नाग ने भी अपने सिक्कों पर मोर की मूर्ति रखी है जिससे जान पड़ता है कि इन दोनों राजाओं ने भी बीरसेन का ही अनुकरण किया १. जान पड़ता है कि संभवतः अश्वमेध यज्ञ कर चुकने के उपरांत जो बच्चा पैदा हुअा था, उसका नाम हय नाग रखा गया था। २. कनिंघम ने इसे ख पढ़ा है, पर मैं इसे वि मानता हूँ; क्योंकि इसकी पाई ऊपर की ओर मुड़ी हुई है और इकार की मात्रा जान पड़ती है । मैं इन्हें उन्हीं सिक्कों के वर्ग में मानता हूँ जिन पर महाराज व लिखा है, क्योंकि इन दोनों ही प्रकार के सिक्कों का पिछला भाग और उन पर के अक्षर आदि समान ही हैं । ( देखिए कनिंघम कृत Coins of Mediaeval India प्लेट २, नं० १३ और १४ ।) ३. कनियम कृत Coins of Mediaeval India प्लेट २, नं० १५ और १६, पृ. २३ ।
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