(४८ ) के पढ़ने का यह क्रम कोई नया नहीं है। इसे दाहिनी ओर के ह से पढ़ना शुरू करना चाहिए। वह हयस है अर्थात् हय नाग का । इसके छोटे आकार के विचार से इसका मिलान चरज के छोटे सिक्के के साथ करना चाहिए जिससे यह मेल खाता है। चरज के छोटे सिक्के के पीछे वाले भाग पर समय या संवत् है। डा० स्मिथ ने उसे ज पढ़ा है, पर मैं कहता हूँ कि वह ३० का सूचक चिह्न या अंक है। यह सिक्का कम मूल्य का है और चरज के बड़े सिक्के के वाद बना था। क्रमांक १२ [प्लेट २३, चित्र नं० १३] इसके सामनेवाले भाग पर, जिसे डा० स्मिथ ने भूल से पिछला भाग समझ लिया है, (श्री) ब (र) हिनस लिखा है। बाईं ओर के वृक्ष की पत्तियाँ मोर की दुम के साथ मिली हुई हैं; अर्थात् यदि नीचे की ओर से देखा जाय तो वे वृक्ष की शाखाएँ जान पड़ती हैं; और यदि सिक्के का ऊपरी सिरा नीचे कर दिया जाय तो वही शाखाएँ मोर की दुम बन जाती हैं। यह मोर राजा के नाम बर- हिन का सूचक है । सिक्के के पिछले भाग पर भी वही वृक्ष है और कुछ लेख है जिसका कुछ अंश घिस गया है। ठप्पे पर कुछ आया है, वह मेरी समझ में ना ग स है; अर्थात् बीच का केवल ग पढ़ा जाता है और उसके पहले का न तथा बाद का स घिस गया है। जिस डा० स्मिथ ने वन समझा है, वह संभवतः ७ का अंक है और यह अंक साँड़ की मूर्ति के नीचे है । इस प्रकार हमें नव नाग और बीरसेन के बाद नीचे लिखे चार राजा मिलते हैं-हय नाग जिसने तीस वर्ष या इससे कुछ अधिक समय तक राज्य किया था। चरज नाग जिसका शासन- काल भी तीस वर्ष या इससे अधिक है। बहिन नाग (सात वर्ष) जो
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