( ४२ ) सिक्कों में जो घनिष्ठ संबंध है (६२६ ख ), उसके सिक्कों पर मानों उसके नाम की पूर्ति करने के लिये नाग का जो चिह्न है, और मथुरा में उसके उत्थान और राज्य-स्थापन का जो समय है, उसको देखते हुए हम कह सकते हैं कि यह वीरसेन शिलालेखों में के भार-शिव नागों और पुराणों में के नव नागों में के आरंभिक राजाओं में से एक था। $ २६ ख. वीरसेन के संबंध में हम विवेचन कर चुके हैं और अब हम दूसरे राजाओं के संबंध में विचार कर सकते हैं। शिलालेखों से हमें यह पता चलता है कि दूसरे भार-शिव राजा भवनाग भार-शिव था और भार- शिव राजाओं में अंतिम था। सिक्कों से पता चलता है कि उससे पहले उसके वंश में और भी कई राजा हो चुके थे। उन सिक्का से यह भी पता चलता है कि इनका वंश आगरा और अवध के संयुक्त प्रांतों में राज्य करता था, क्योंकि वहीं ये सिक्के बहुत अधिक संख्या में मिलते हैं। और उन्हीं सिख्कों से यह भी पता चलता है कि कौशांबी में इन राजाओं की एक खास टकसाल थी। मुद्राशास्त्र अथवा इतिहास के ज्ञाताओं ने अभी तक यह निश्चित नहीं किया है कि ये सिक्के किस राजवंश के हैं; और न अभी तक इन सिक्कों का पारस्परिक संबंध ही निश्चित हुआ है। इसलिये मैं यहाँ इस संबंध में पूरा पूरा विचार करता हूँ। इस प्रकार के सब सिक्के कलकत्ते के इंडियन म्यूजियम में हैं। ये सब दसवें विभाग में रखे गए हैं और यह विभाग उत्तरी भारत के अनिश्चित फुटकर प्राचीन सिकों का है। इसके चौथे
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/६८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।