पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/५८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ३४ ) मथुरा में तो ये बहुत अधिकता से पाए जाते हैं जहाँ से कनिंघम को प्रायः सौ सिक्के मिले थे। कारलेली को बुलंदशहर जिले के इंदौरखेड़ा नामक स्थान में ऐसे तेरह सिक्के मिले थे। ऐसे सिक्के एटा जिले के कुछ स्थानों में, कन्नौज में तथा फर्रुखाबाद जिले के कुछ और स्थानों में भी पाए गए हैं । इस प्रकार यह सूचित होता है कि वह मथुरा में रहता था और समस्त आर्यावर्त दोश्राव पर राज्य करता था । आम तौर पर उसके जो सिक्के पाए जाते हैं, वे छोटे और चौकोर होते हैं। उन पर सामने की ओर ताड़ का पेड़ होता है और सिंहासन पर बैठी हुई एक मूर्ति होती है। (विसेंट स्मिथ C. I. M. पृ० १६१)। जैसा कि पहले बतलाया जा चुका है, यह ताड़ का वृक्ष नागों का चिह्न है। जैसा कि हम आगे चलकर बतलावेंगे, यह चिह्न भार-शिवों के बनवाए हुए स्मृति चिह्नों आदि पर भी मिलता है (६४६ क)। इस राजा के एक और तरह के भी सिक्के मिलते हैं जिनमें के एक सिक्के का चित्र जनरल कनिंघम ने अपने Coins of Ancient India के आठवें प्लेट में दिया है। इसका क्रमांक १८ है । इसमें एक मनुष्य की कदाचित् बैठी हुई मूर्ति है जिसके हाथ में एक खड़ा हुआ नाग है। इस राजा के एक तीसरे प्रकार के सिक्के का चित्र प्रो. ४ १. विसेंट स्मिथ कृत C. I. M, पृ० १९१ । २. उक्त ग्रंथ पृ० १६१ । ३. सिंहासन पर जो छत्र बना है, उसे कुछ लोग प्रायः भूल से राजमुकुट समझते हैं । ( मिलायो C. I. M, पृ० १६७ )। ४. देखो यहाँ दिया हुअा प्लेट १ । इसमें दिए हुए चित्र कनिं- घम के दिए हुए चित्र के फोटो नहीं हैं, बल्कि उन्हें देखकर हाथ से तैयार किए हुए चित्र हैं।