कौशांबीवाले सिक्कों के दूसरे राजाओं के साथ इसका संबंध स्थापित होता है। जैसा कि हम आगे चलकर ६२६ ख में बतलावेंगे, कौशांबी के सिके वास्तव में भार- शव राजाओं के सिक्के हैं। इनमें से कई सिक्कों पर ऐसे नाम हैं जिनके अंत में नाग शब्द पाया है। हमारे सिक्कों का यह नव नाग वही राजा जान पड़ता है जिसके नाम पर पुराणों ने नव नाग या नव नाक राजवंश का नामकरण किया है। यही उस नव नाग राजवंश का प्रतिष्ठापक था जिस राजवंश की राजकीय उपाधि भार-शिव थी। इसके सिक्कों पर के अक्षर आकार में वैसे ही हैं, जैसे हुविष्क वासुदेव के लेखों के अक्षर हैं; इसलिये हम यह मान सकते हैं कि यह वासुदेव का समकालीन था और इसका समय लगभग सन् १४०-१७० ई. निश्चित कर सकते हैं। $ २६ क. हमें पता चलता है कि सन् १७५ या १८० ई० के लगभग एक नाग राजा ने मथुरा में फिर से हिंदू राज्य स्थापित किया था। वह राजा वीरसेन था। वीर- सन् १७५-१८० के सेन के उत्थान से केवल नाग-वंश के इति- लगभग वीरसेन द्वारा हास में ही नहीं बल्कि आर्यावर्त के इति- मथुरा में भार-शिव हास में भी मानों एक नवीन युग का आरंभ राज्य की स्थापना होता है। उसके अधिकांश सिके उत्तरी भारत में और विशेषतः समस्त संयुक्त प्रांत में पाए गए हैं और कुछ सिक्के पंजाब में भी मिले हैं। १. विसेंट स्मिथ के शब्दों में-"ये सिक्के पश्चिमोत्तर प्रांतों और पंजाब में भी साधारणतः पाए जाते हैं ।" J. R. A. S., १८६७, पृ०८७६ । साथ ही देखो Catalogue of Coins in Lahore Musuem, तीसरा भाग, पृ. १२८ राजस C. I. M., तीसरा भाग, पृ० ३२-३३ ।
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