पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/५०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २६ ) आवश्यकता नहीं है और यदि "तम्" हो तो उसका कोई अर्थ नहीं हो सकता। यदि "त्रयः” पाठ ही मान लिया जाय, जिसके होने में मुझे संदेह है, तो फिर उसका अर्थ यह मानना होगा कि यशानंदी के आगे राजाओं की तीन शाखाएँ हो गई थीं; और यह अर्थ नहीं होगा कि यशःनंदी के बाद तीन और राजा हुए थे, क्योंकि आगे चलकर विष्णुपुराण में कहा है कि नव नागों' ने पद्मावती, मथुरा और कांतिपुरी इन तीन राजधानियों से राज्य किया था। यशः नंदी का वंश अथवा कम से कम उसकी एक शाखा समाप्त हो गई और जाकर दौहित्र में मिल गई जिसे साधारणतः लोग शिशु कहते हैं। नागों ने पद्मावती छोड़ दी थी; और ऐसा जान पड़ता है कि प्रबल कुशन राजाओं के आ जाने के कारण ही उन्हें पद्मावती छोड़नी पड़ी होगी। पुराणों में हमें निश्चित रूप से यह उल्लेख मिलता है कि विन्वस्फाणि पद्मावती में राज्य करता था और उसका राज्य मगध तक था ( देखो ३३-३४) । अतः अब हम यह बात मान सकते हैं कि सन् ८०- १०० ई० के लगभग नाग वंश के राजा लोग मथुरा और विदिशा के बीच के राजमार्ग से हट गए थे और उन्होंने मध्यप्रदेश के अगम्य जंगलों में जाकर शरण ली थी (६३१ क)। १. नवनागाः पद्मावत्याम् कांतिपुर्याम् मथुरायाम्। अनुगंगा प्रयाग मागधा गुप्ताश्च भोक्ष्यति । जिस प्रकार गुप्तों के साथ मागजाः विशेषण है, उसी प्रकार नागों के साथ विशेषण रूप से "नव" शब्द पाया है। पर पुराणों में न तो गुप्तों की ही और न नागों को ही कोई संख्या दी गई है । अतः यहाँ इस "नव" शब्द का अर्थ "नौ” नहीं हो सकता। वा तो इसका अर्थ "नये या परवर्ती नाग" हो सकता है या "राजा नव के वंश के नाग"। (देखो ६ २५)