( ३६८) ( A. S. R. खंड २१, प्लेट २७, दूसरा अभिलेख ) में दी है। तीसरे अक्षर "ट" के ऊपर एक शोशा है और उसके नीचे की गोलाई अधिक विकसित नहीं है । चौथे अक्षर "क" के ऊपरी भाग में विशेष घेरा नहीं है और अंतिम अक्षर "न" का वह रूप नहीं है जो पृथिवीषेण के अभिलेख में है और यह "न" और भी पहले का है। "म" भी पुराने ही ढङ्ग का है। इस प्रकार इस लेख के अधिकांश अक्षर उन शिलालेखों के अक्षरों से पहले के जान पड़ते हैं, जो पृथिवीषण के समय में उत्कीर्ण हुए थे और जिनका अब तक पता चला है। इस प्रदेश में जो महत्त्वपूर्ण प्राचीन स्थान हैं, उनका पारस्प- रिक अंतर भी मैं यहाँ बतला देना चाहता हूँ। नचना से लगभग पाँच मील की दूरी पर उत्तर-पश्चिम की स्थानों का पारस्परिक ओर दुरेहा है । भूभरा (भूमरा ) से खोह अंतर पाँच मील ( दक्षिण की ओर ) पहाड़ी के उस पार है । गंज से भूभरा तेरह मील की दूरी पर है। खोह दक्षिण की ओर एक ऊँची पहाड़ी ( ऊँचाई लगभग १५०० फुट ) के नीचे है और नचना उसकी उत्तरी ढाल के नीचे है । खोह तो नागौद रियासत में है और नचना अजयगढ़ में । दुरेहा जासो में है। प्रारंभिक शताब्दियों में दो बड़े कस्बे थे- एक तो उस स्थान पर था, जहाँ आजकल गंज नचना है; और दूसरा उस स्थान पर था, जहाँ आजकल खोह नामक गाँव है। ये दोनों कस्बे एक साथ ही बसे थे और एक पर्वतमाला इन दोनों को एक दूसरे से जोड़ती भी थी और अलग भी करती थी और उसी पर्वत के शिखर पर भूमरा का मंदिर था। इस "भूभरा" शब्द का अधिक प्रचलित और अधिक शुद्ध उच्चारण “भूमरा" है। यह मंदिर मझगवाँ (बीच का गाँव) के पास है और भूभरा गाँव से
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