पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३९४

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७ विष्णुगोप प्रथम ३४६ ७. क. सिंहवर्मन द्वितीय ३४६-३६० इस काल-निरूपण का पूरा पूरा समर्थन विष्णुगोप की उस तिथि से होता है जो हमें समुद्रगुप्त के इतिहास से मिलती है। ब्राह्मण गंग-वंश १७. दक्षिण के अबोनस्थ या भृत्य ब्राह्मण राज्य गंग और कदंब १८८. पल्लवों की अधीनता में ब्राह्मण काण्वायनों का एक अधीनस्थ या भृत्य राज्य स्थापित हुआ था और इस राज्य के अधिकारियों ने अपने मूल निवास-स्थान के नाम पर अपने वंश का नाम गंग-वंश या गंगा का वंश रखा था; और उन्होंने अपना यह नामकरण उसी प्रकार किया था, जिस प्रकार गुप्तों की अधीनता में कलिग राजाओं ने अपने वंश का नाम "मगध वंश" रखा था। गंग वंश के तीसरे राजा के समय से इस वंश के सब राजा हर पीढ़ी में पल्लवों के द्वारा अभिषिक्त किए जाते थे, जिनमें से सिहवर्मन् पल्लवेंद्र और साथ ही उसके उत्तराधिकारी स्कंदवर्मन् ( तृतीय) के नाम उनके सबसे आरंभिक और असली ताम्रलेख में मिलते हैं। बहुत कुछ संभावना इसी बात की जान पड़ती है कि ये काण्वायन लोग मगध के साम्राज्य-भोगी काण्वायनों की ही एक शाखा के थे जिनमें का अंतिम राजा (सुशर्मन् ) कैद हो गया था १. एपिग्राफिया इंडिका, १४. ३३३ ।