(३५५) द्वितीय के शासन-काल में प्रचलित किया था; और दूसरा बुद्ध- वर्मन् के पुत्र कुमार विष्णु ( तृतीय) ने प्रचलित किया था और जिसके दादा का नाम कुमारविष्णु द्वितीय था और जिसका पर- दादा विजयस्कंदवर्मन था। इस प्रकार यह बात स्पष्ट हो जाती है कि जिस बुद्धवर्मन् को उसकी पत्नी ने स्कंदवभन् द्वितीय के शासन-काल में युव-महाराज कहा है, वह कुमारविष्णु द्वितीय का पुत्र था और उसके संबंध में साधारणतः जो यह माना जाता है कि वह स्कंदवर्मन द्वितीय का पुत्र था, वह ठीक नहीं है। वह अपने दादा का युव-महाराज था और जान पड़ता है कि उसके पिता का देहांत उसके पहले ही हो चुका था। ब्रिटिश म्यूजियम वाले ताम्रलेख से इस बात का पता नहीं चलता कि स्कंदवर्मन (द्वितीय) के साथ उसका क्या संबंध था। हम यह जानते हैं कि युवराज का पद पोतों को उनके पिता के जीवन-काल में भी दे दिया जाया करता था। इस प्रकार उस समय के पल्लवों की जो पूरी वंशावली तैयार होती है, वह यहाँ दे दी जाती है (इनमें से जिन राजाओं ने शासन किया था, उन पर अंक लगा दिए गए हैं और अंक १ से ७ क तक उस समय की वंशावली पूरी हो जाती है, जिस समय का हम यहाँ वर्णन कर रहे हैं )। १. कुमारविष्णु वीरकोर्चवर्मन् ( एपि० इं० १५, २५१. एपि० इं० १, ३६७) ( अश्वमेधिन् ) = नाग राजकुमारी (S. I. I. २, . १. देखो जायसवाल कृत Hindu Polity दूसरा भाग, पृ० १२५ ।
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