पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३८

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- ( १४ ) यहाँ हम यह भी बतला देना चाहते हैं कि मत्स्यपुराण और भागवत में यह वचन आया है। सुशर्माणम् प्रसह्य (अथवा प्रगृह्य ) तं शुंगानाम् च-ऐव य च-च्छेशम् क्षपित्वा तु बलं तदा । अर्थात्-(अांध्र राजा ने ) सुशर्मन् ( कण्व राजा ) को बंदी बनाकर, और उस समय शुंग-शक्ति का जो कुछ अवशिष्ट था, वह सब नष्ट करके। यह कथन उस शुंग शक्ति के संबंध में है जो अपने मूल निवास स्थान विदिशा में बच रही थी। उक्त स्थान पर पुराणों में विदिशा के राजाओं का वर्णन है, अतः शुंगों के पहले और बाद विदिशा के जो नाग शक्तिशाली हुए थे, उनके विषय में आए हुए उल्लेख का संबंध आंध और शातवाहन-काल से होना चाहिए, जब कि शातवाहन लोग दक्षिणापथ के सम्राट होने के साथ ही साथ आर्यावर्त के भी सम्राट हो गए थे और यह काल ईसवी सन् से लगभग ३१ वर्ष पूर्व का है । १ पारजिटर कृत Purana Text, पृ० ३८. २ बिहार उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी का जनरल, पहला खंड, पृ० ११६. पुष्यमित्र-राज्यारोहण ई० १८८ शुंग वंश के राजा-११२ वर्ष १५७ ३१ ई० पू० कण्व वंश के राजा-४५ वर्ष २. यह सुरपुर वह इंद्रपुर हो सकता है जो अाजकल बुलंदशहर जिले में इंदौरखेडा के नाम से प्रसिद्ध है, जहाँ बहुत से वे सिक्के पाए गए हैं जो अाजकल मथुरावाले सिक्के कहलाते हैं । देखिए A. S. R. १२; पृ० ३६ की पाद-टिप्पणी ।