(३४६ ) का पहला राजा वीरकोर्च या वीरकूर्च था; और शिलालेखों से पता चलता है कि उसने एक नाग-राजकुमारी के साथ विवाह किया था; और रायकोटवाले ताम्रपत्रों से पता चलता है कि स्कंदशिष्य अथवा स्कंदवर्मन् उसका पुत्र था जो उसी नाग महिला के गर्भ से उत्पन्न हुआ था' । अब हमें १. कुछ पाठ्य पुस्तकों में भूल से यह मान लिया गया है कि रायकोटवाले ताम्रपत्रों से पता चलता है कि स्कंदशिष्य अश्वत्थामन् का पुत्र था और एक नाग महिला के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। परंतु ताम्रलेखों में यह बात कहीं नहीं है। उनमें केवल यही कहा गया है कि स्कंद-शिष्य एक अधिराज था और एक नाग महिला का पुत्र था। उनमें अश्वत्थामान् का उल्लेख केवल एक पूर्वज के रूप में हुश्रा है। वेलुरपलैयम-वाले ताम्रलेखों में जिस स्कंदशिष्य का उल्लेख है, वह कुमारविष्णु का पिता और बुद्धवर्मन् का प्रपिता था; और वह स्पष्ट रूप से स्कंदवर्मन् द्वितीय था, जिसका लड़का, जैसा कि हमें कुमार- विष्णु तृतीय के शिलालेख ( एपि० ई०, ८, २३३ ) से ज्ञात होता है, कुमारविष्णु द्वितीय था । वेलुरपलैयमवाले ताम्रपत्रों के संपादक और कुछ पाठ्य पुस्तकों के लेखकों ने भूल से यह बात मान ली है कि वह ( स्कंदशिष्य ) वीरकोर्च का पुत्र था। परंतु वास्तव में उन ताम्रलेखों में यह बात कहीं नहीं लिखी गई है। सातवें श्लोक में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि वीरकोर्च के उपरांत (ततः) और उसके वंश में स्कंद-शिष्य हुआ था। इसका यह अभिप्राय है कि वीरकूर्च और स्कंद-शिष्य के बीच में शृंखला टूट गई थी (मिलाश्रो इंडियन एंटि- क्वेरी १६. २४, १० में का ततः और उस पर कीलहान की सम्मति जो एपि० ई० ५ के परिशिष्ट सं० १६५, पाद-टिप्पणी और एपि० ई०
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