( ३४०) अश्वत्थामा के वंश के थे । और मैंने स्वयं बुंदेलखंड में वाकाटकों के मूल निवास स्थान बागाट नामक कस्बे में जाकर यह देखा है कि वह स्थान अब तक द्रोणाचार्य का गाँव कहलाता है, और ये वही द्रोणाचार्य थे जो कौरवों और पांडवों को अस्त्र-विद्या की शिक्षा देते थे (६५६-५७ )। कला और धर्म के क्षेत्र में पल्लवों की जो उत्तर भारतीय संस्कृति देखने में आती है, और जिसके कारण उनका वंश दक्षिणी भारत का सबसे बड़ा राजवंश समझा जाता है, उस संस्कृति का रहस्य इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है। पल्लव लोग न तो विदेशी ही थे और न द्रविड़ ही थे, बल्कि वे उत्तर को ओर से गए हुए उत्तम और कुलीन ब्राह्मण थे और उनका पेशा सिपहगरी का था। पल्लव ६ १७७. गंग-वंश इस बात का उदाहरण है कि वंशों का कुछ ऐसा नाम रख लिया जाता था, जिसका न तो गोत्र के साथ कोई संबंध होता था और न वंश के संस्थापक के नाम के साथ । संभवतः इसी प्रकार वंश का यह "पल्लव' नाम भी रख लिया गया था। 'पल्लव” शब्द का अर्थ होता है-शाखा; और जान पड़ता है कि इस वंश का यह नाम इसलिये रख लिया गया था कि यह भी साम्राज्य भोगी सातवाहनों की एक छोटी शाखा, चुटुओं की तरह थी, और इस वंशवालों ने सातवाहनों को दबाकर उनके स्थान पर अधिकार कर लिया था । साम्राज्य भोगी सातवाहनों के वंश के साथ चुटुओं का जो संबंध था, वही संबंध पल्लवों का साम्राज्य-भोगी भारद्वाज वाकाटकों के साथ था अर्थात् यह भी वाकाटकों के वंश की एक शाखा ही थी। पहले पल्लव राजा का नाम वीरकूर्च था। कूर्च शब्द का अर्थ होता है-टहनियों का
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