पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३६१

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( ३३३) भारतवर्ष में जन्म लेनेवाले पुरुष धन्य हैं । और हम लोग भी उसी देश में जन्म लें।" अब लोगों का वह पुराना आर्योंवाला दृष्टिकोण नहीं रह गया था और उसके स्थान पर उनका दृष्टिकोण "भारतीय" हो गया था और लोग "भारती संततिः" पद का प्रयोग करने लगे थे, जिसके अंतर्गत इस देश में जन्म लेनेवाले सभी लोग आ जाते थे, फिर चाहे वे आर्य हों और चाहे अनार्य । $ १७४. जिन पल्लवों ने दक्षिण को पवित्र हिंदू देश बनाया था, वे ब्राह्मण थे; और जैसा कि उन्होंने गर्वपूर्वक अपने शिला- लेखों में कहा है, उन लोगों ने विकट तथा पल्लवों का उदय उग्र राजनीतिक कार्य करके अपनी मर्यादा नागों के सामंतों के रूप बढ़ाई थी और वे क्षत्रिय बन गए थे में हुआ था। उनका यह कथन बिलकुल ठीक है । पल्लव राजवंश के संस्थापक का नाम वीरकूर्च था और उसका विवाह नाग सम्राट की कन्या और नाग राज- कुमारी के साथ हुआ था और इसीलिये वह पूर्ण राजचिन्हों से अलंकृत हुआ था । उन दिनों अर्थात् तीसरी शताब्दी के उत्त- रार्द्ध में जो नाग सम्राट था, वह भार-शिव नाग था जिसका राज्य नागपुर और बस्तर से होता हुआ ठेठ आंध देश तक जा पहुँचा था। वीरकूर्च (अथवा वीरकोर्च) के पौत्र का एक शिलालेख १. उक्त, २४-२६ । २. उक्त, श्लोक १७ । ३. यः फणीन्द्रसुतया महाग्रहीद्राजचिन्ह मखिलं यशोधनः । South Indian Inscriptions, २, ५०८ ।