पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३५८

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(२३०) खंभों में जो मूर्तियाँ बनी हुई हैं, वे उसी अमरावती की कला की हैं जिसे भारतीय-कला की वेंगीवाली शाखा कहते हैं । जैसा कि अमरावती-वाले शिलालेखों ( एपि० इं०, खंड १५, पृ० २६७ ) से प्रमाणित होता है, यह कला ईसवी सन से कई शताब्दी पहले से चली आ रही थी। अमरावती में जो बहुत बढ़िया नक्काशी के काम हैं, वे मेरी समझ में सातवाहनों के ही समय के हैं, जिनका व्यक्तिगत नाम शियेन-ते-क या शन्ते-क (वार्स Watters २. २०७ ) था और जो मुझे शांतकर्ण का ही बिगड़ा हुआ रूप जान पड़ता है; और शांतकर्ण शब्द सातवाहन सूची में तीन बार आया है। युआन च्वांग ने जो यह अनुश्रति सुनी थी कि सातवाहन राजा नागार्जुन का संरक्षक था, वह तब तक प्रामाणिक नहीं हो सकती, जब तक नागार्जुन ईसा या ईसवी सन् से पहले न हुआ हो । युआन-च्यांग ने लिखा है कि मूल स्तूप अशोक का बनवाया हुआ था । इक्ष्वाकुओं ने जो काम किया था, वह सातवाहनों की नकल थी। केवल शातकर्णि द्वितीय ही इतना संपन्न था कि वह अशोक के आंध देशवाले स्तूप को अलंकृत कर सकता। उसका शासनकाल भी बहुत विस्तृत था ( उसने ई० पू० सन १०० से सन् ४४ तक राज्य किया था। देखो बिहार-उड़ीसा रिसर्च सोसा- इटी का जरनल, खंड १६, पृ० २७८)। और अशोक के स्तूप को अलंकृत करने के लिये उसी को यथेष्ट समय मिला था। फिर युवान-च्चांग ने भी यही लिखा है कि वह सातवाहन राजा बहुत दीर्घजीवी था और उसके पुत्र का शासन-काल अमरावती में एक स्थान पर अंकित है ( देखो ल्यूडर्स नं० १२४८ ) यह भी प्रवाद है कि स्तूप बनवाने में जब राजा शांतक सातवाहन का खजाना खाली हो गया, तब नागार्जुन ने पहाड़ी में से निकालकर उसे बहुत सा सोना दिया था । और हो सकता है कि इस जनश्रति का