पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३४७

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(३१६) कि आभीर और सौराष्ट्र लोग यादवों और अंधक वृष्णियों के ही संगी-साथी और रिश्तेदार थे। श्रीपार्वतीय कौन थे और उनका इतिहास ६ १६७. गंटूर जिले में कृष्णा नदी के किनारे नागार्जुनी- कोंड अर्थात् नागार्जुन की पहाड़ी पर अभी हाल में जो कई शिलालेख मिले हैं उनके आधार पर डा० श्रीपर्वत हीरानंद शास्त्री ने यह निश्चय कर लिया है कि श्रीपर्वत कौन था । वे सब शिलालेख ईसवी तीसरी शताब्दी के हैं। इन पहाड़ियों के बीच में एक उपत्यका या घाटी है। और इन पहाड़ियों पर उन दिनों किलेबंदी थी। ईटों की किलेबंदी के कुछ भग्नावशेष वहाँ अभी तक वर्त- मान हैं और वे ईंटें मौर्य ढंग की हैं । सैनिक कार्यों के लिये यह स्थान बहुत ही उपयुक्त था और एक दृढ़ गढ़ का काम देता था; और जान पड़ता है कि मौर्यों के समय अथवा उससे भी और पहले से यह स्थान प्रांतीय राजधानी के रूप में चला आ रहा था । वहाँ शत्रुओं से अपना बचाव करने के लिये जो प्राकृतिक योज- नाएँ थीं, उन्हें ईंटों और पत्थरों की किलेबंदी से और भी ज्यादा मजबूत कर लिया गया था । वे ईंटें २० इंच लम्बी, १० इंच चौड़ी १. श्रारकियालोजिकल सर्वे रिपोर्ट, १९२६-२७,पृ० १५६ और उसके श्रागे, १९२७-२८, पृ० ११४ । लिपि के संबंध में देखो श्रार० स० रिपोर्ट १९२६-२७, पृ० १८५-१८९ । जब मेरी यह मूल पुस्तक छपने लगी थी, तब मुझे एपिग्राफिया इंडिका, खंड २० का पहला अंक मिला था जिसमें डा. वोगेल ने इन शिलालेखों को संपादित करके प्रकाशित कराया है।